गुरुवार, 8 सितंबर 2022

नियोग क्या है, यह संभोग से कैसे अलग है

जय श्री कृष्णा

नमस्कार 




साथियों, आज के इस विडियो में हम जानेंगे नियोग क्या है। महाभारत काल में नियोग से संतान उत्पत्ति कैसे होती थी। क्या नियोग वैध प्रथा है। क्या नियोग से उत्पन्न पुत्र वैध होता है। नियोग कब कर सकते हैं। यह संभोग से कैसे अलग है। तो चलिए शुरू करते हैं आज का ये विडियो...


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तो चलिए शुरू करते हैं….

प्राचीन काल में राजाओं को ऋषि, मुनि से वरदान स्वरूप पुत्र की प्राप्ति हो जाती थी। पुत्र प्राप्ति की इस क्रिया को नियोग कहा जाता था। ऋगवेद में भी नियोग के बारे में जानकारी दी गई है। 

नियोग क्रिया उस स्थिति में ही की जा सकती थी, जब राजा नपुंसक हो अथवा किसी कारण से संतान उत्पन्न करने में सक्षम न हो। अथवा रानी किसी कारण से पुत्र उत्पन्न नहीं कर पा रही हो। तब वंश को आगे बढ़ाने और धर्म की रक्षा के लिए अंतिम उपाय के रूप में नियोग क्रिया को अंजाम दिया जाता था। इसमें पति-पत्नी दोनों की रजामंदी से केवल पुत्र प्राप्ति हेतु किसी नियुक्त किए गए दूसरे पुरुष अथवा महिला से पुत्र प्राप्ति करने का प्रावधान था। इसमें सिर्फ गर्भ ठहरने तक ही संबंध रखा जाता था। नियोग से प्राप्त पुत्र को नियोग पुत्र कहा जाता था। किसी भी पुरुष को सिर्फ तीन बार यह प्रक्रिया करने का अधिकार था।

इन नियोग पुत्रों के पिता उनकी माता के पति और उनके ही वंश को चलाने वाले होते थे न कि वो पुरुष जिसके नियोग से वे उत्पन्न हुए हो।


नियोग के प्रकार

नियोग दो प्रकार से होता है। पहले तरीके में एक स्त्री का गर्भ दूसरी स्त्री में ट्रांसफर किया जाता था। इसका उदाहरण बलराम हैं। बलराम जी देवकी जी के गर्भ में थे उनके जन्म लेने पर कंस उन्हें मार देता इसलिए उस गर्भ को वसुदेव जी की दूसरी पत्नी के गर्भ में नियोग के द्वारा भेज दिया गया ।

दूसरा तरीका : इसमें किसी स्त्री के पति के नपुंसक होने पर अथवा उसकी मृत्यु हो चुकी हो तो किसी ऋषि महर्षि,  देवता  जो नियोग के ज्ञाता हो ,उनके द्वारा नियोग से संतानोत्पत्ति की जाती थी। 

महाभारत में विचित्रवीर्य की मृत्यु के पश्चात भगवान वेदव्यास जी के नियोग से विचित्रवीर्य की पत्नियों को धृतराष्ट्र , पांडु, विदुर ये ३ नियोग पुत्र हुए थे।


संभोग और नियोग में अंतर

यद्यपि नियोग और संभोग संतान प्राप्ति के लिए की जाने वाली प्रक्रियाएं है। इसके बावजूद इसमें अंतर है। संभोग में संतान के साथ-साथ काम वासना की पूर्ति करते हुए स्त्री पुरुष आपस में शारीरिक संबंध स्थापित करते हैं। जबकि नियोग में ऐसा नहीं है। नियोग में स्त्री पुरुष काम वासना से रहित होकर संतान की उत्पत्ति करते हैं। नियोग के दौरान काम वासना रोकने के लिए ही स्त्री और पुरुष दोनों अपने शरीर में घी का लेप लगाते थे। ताकि इस कार्य को करते समय दोनों के बीच कहीं से भी काम वासना जागृत न हो। नियोग का एक मात्र उद्देश्य पुत्र प्राप्ति होती थी। संतान उत्पत्ति के लिए आईवीएफ तकनीक, स्पर्म डोनेशन आज भी नियोग के ही बदले रूप हैं।


क्या नियोग से प्राप्त पुत्र वैध होता था

नियोग को व्यभिचार मानना गलत होगा। इसके दो कारण हैं। पहला यह कि ये तरीका सामाजिक कायदे कानून को न तोड़ते हुए और धर्म की रक्षा हेतु पुत्र प्राप्ति करने का तरीका था। इसमें स्त्री की मर्जी अनिवार्य होती थी। इसे तभी किया जा सकता था जब स्त्री के पति की मृत्यु हो गई हो और राज्य में उत्तराधिकारी का संकट दिख रहा हो। अथवा राजा नपुंसक हो गया हो। राजधर्म के पालन हेतु यह एक मान्य क्रिया थी। 


दूसरा यह समाज में उसी तरह से मान्य थी जैसे कि विवाह। अगर विवाह के बाद  पुरुष स्त्री के साथ संभोग करता है तो वो व्यभिचार नहीं माना जाएगा। उसी तरह से जरूरत पड़ने पर अंितम उपाय हेतु पति अथवा घर के बुजुर्गोँ की मर्जी से स्त्री किसी तीसरे नियुक्त पुरुष से नियोग करती थी। इसलिए यह पूरी तरह से वैध था। और इससे प्राप्त पुत्र भी वैध था। 


नियोग का शब्दिक अर्थ ही उपाय से है। 


गर्भ ठहरने के बाद स्त्री दोबारा उस पुरुष से कभी नहीं मिलती थी और न ही वो पुरुष कभी उस जन्मे बच्चे के बारे में पता करता था। 

एक व्यक्ति अपने पूरे जीवनकाल में सिर्फ तीन बार नियोग कर सकता था। ऐसा सिर्फ इसिलए किया गया होगा ताकि इस व्यवस्था का कोई अनुचित लाभ न ले सकें। 

 

नारी वादियों का पक्ष

इस मामले में नारी शक्ति की आवाज उठाने वालों का पक्ष है कि यह एक कुप्रथा थी। इसमें विधवा को पुर्नविवाह की अनुमति देने के बजाय उसे किसी दूसरे शख्स से संतान उत्पत्ति के नाम पर परोसा जाता था। हालांकि उनका यह तर्क इसलिए अमान्य हो जाता है क्योंकि नियोग में नारी की मर्जी अनिवार्य थी। इसके एवज में इनका कहना है कि उस समय की स्त्रियों के पास इतनी आजादी नहीं थी कि वो अपने पति के खिलाफ अथवा घर के खिलाफ आवाज उठा सकें। 

हालांकि आज सेरोगेसी, आईवीएफ और स्पर्म डोनेशन नियोग के बदले रूप में सामने आ चुका है। इसके बाद भी नियोग को गलत ठहराना शायद ठीक नहीं होगा। क्योंकि उस समय की साइंस आज की तुलना में काफी आगे रही होगी। तभी तो बलराम को वासुदेव ने देवकी के गर्भ से रोहिणी के गर्भ में ट्रांसफर किया होगा। 


खैर, हमारा मकसद नियोग से परिचय करवाना था। इसके सही गलत का निर्णय आप पर छोड़ता हूं। कमेंट बॉकस में बताए कि क्या संतान प्राप्ति की यह क्रिया वैध थी। 


उम्मीद करते हैं विडियो पसंद आया होगा। जल्द मिलेंगे एक टॉपिक के साथ एक नए विडियो में, तब तक के लिए नमस्कार, धन्यवाद, जय श्रीकृष्णा

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