जय श्री कृष्णा
नमस्कार
साथियों,
तुलसीदास जी की रामचरित मानस में 14 अवगुणों से युक्त मनुष्य को
जीवित होते हुए भी मृत बताया गया है। यह प्रसंग उस समय आता है जब राम-रावण का युद्ध
शुरू होने वाला होता है। अंतिम बार राम के कहने पर अंगद रावण को समझाने जाते हैं, लेकिन
रावण अंगद को ही बंदी बनाने को कह देता है। तब अंगर प्रभु राम का नाम लेकर अपना पैर
रावण की सभा में जमा देते हैं। रावण की सभा कोई भी योद्धा अंगद का पैर हिला तक नहीं
पाता है। अंत में रावण खुद अंगद का पैर उठाने आता है, लेकिन जैसे ही रावण पैर उठाने
के लिए जमीन पर बैठता है, तभी अंगद अपना पैर स्वत: हटा लेते हैं और रावण से कहते हैं
कि तु तो पहले से ही मरा हुआ है, तुझे मारने से क्या लाभ
तब रावण कहता है– मैं जीवित हूँ, मरा हुआ कैसे? तब अंगद ने कहा, सिर्फ साँस लेने
वालों को जीवित नहीं कहते - साँस तो लुहार की धौंकनी भी लेती है! सही मायने में
जीवित वो है जिसका तन, मन और बुद्धि सभी
जागृत अवस्था में होते हैं।
इस दौरान अंगद रावण को 14 अवगुणों के बारे
में बताते हैं, जिसे तुलसीदास ने चौपाई के माध्यम से बताया है।
आइए जानते हैं। हैं वो कौन से
14 अवगुण हैं, जिससे जीवित मनुष्य भी मरे के समान है।
कौल कामबस कृपिन विमूढ़ा।
अतिदरिद्र अजसि अतिबूढ़ा।।
सदारोगबस संतत क्रोधी।
विष्णु विमुख श्रुति संत विरोधी।।
तनुपोषक निंदक अघखानी।
जीवत शव सम चौदह प्रानी।।🐦
यह चौपाई रामचरितमानस में लंकाकांड की है। इस का अर्थ है
वाममार्गी, कामी, कंजूस, अत्यंत मूढ़, अति दरिद्र, बदनाम, बहुत बूढ़ा, नित्य का रोगी, निरंतर
क्रोधयुक्त रहने वाला, भगवान् विष्णु
से विमुख, वेद और संतों का
विरोधी, अपना ही शरीर
पोषण करने वाला, पराई निंदा करने
वाला और पापी - ये चौदह प्रकार के अवगुण हैं जो मनुष्य को जीते जी मार देते हैं।
आइए अब हम एक-एक कर इन 14 अवगुणों को विस्तार से समझते हैं कि कैसे ये अवगुण जीवित
होते हुए भी मरे के सामान हैं।
१. वाममार्गी: जो व्यक्ति पूरी दुनिया से उल्टा चले, जो संसार की हर
बात के पीछे नकारात्मकता खोजता हो, नियमों, परंपराओं और लोक व्यवहार के खिलाफ चलता हो, वह वाममार्गी
कहलाता है। ऐसे काम करने वाले लोग मृत समान माने गए हैं।
२. कामी: जो व्यक्ति अत्यंत भोगी हो, कामवासना में लिप्त रहता हो, जो संसार के
भोगों में उलझा हुआ हो। जिसके मन की इच्छाएं कभी खत्म नहीं होतीं और जो प्राणी
सिर्फ अपनी इच्छाओं के अधीन होकर ही जीता है, वह मृत समान है।
३. कंजूस: अति कंजूस व्यक्ति भी मरा हुआ होता है। जो
व्यक्ति धर्म का कार्य करने में, आर्थिक रूप से किसी कल्याणकारी कार्य में
हिस्सा लेने में हिचकता हो,
दान करने से बचता
हो, ऐसा आदमी भी मृतक
समान ही है।
४. अति दरिद्र: गरीबी सबसे बड़ा श्राप है। जो व्यक्ति धन, आत्म-विश्वास, सम्मान और साहस
से हीन हो, वह भी मृत ही है।
अत्यंत दरिद्र भी मरा हुआ है। गरीब आदमी को दुत्कारना नहीं चाहिए, क्योंकि वह पहले
ही मरा हुआ होता है।
५. विमूढ़: अत्यंत मूढ़ यानी मूर्ख व्यक्ति भी मरा हुआ ही
होता है। जिसके पास बुद्धि-विवेक न हो, जो खुद निर्णय न ले सके, यानि हर काम को समझने या निर्णय लेने में किसी अन्य पर
आश्रित हो, ऐसा व्यक्ति भी
जीवित होते हुए मृतक समान ही है, मूढ़ अध्यात्म को नहीं समझता।
६. अजसि: जिस व्यक्ति को संसार में बदनामी मिली हुई है, वह भी मरा हुआ
है। जो घर-परिवार, कुटुंब-समाज, नगर-राष्ट्र, किसी भी ईकाई में
सम्मान नहीं पाता, वह व्यक्ति भी
मृत समान ही होता है।
७. सदा रोगवश: जो व्यक्ति निरंतर रोगी रहता है, वह भी मरा हुआ
है। स्वस्थ शरीर के अभाव में मन विचलित रहता है। नकारात्मकता हावी हो जाती है।
व्यक्ति मृत्यु की कामना में लग जाता है। जीवित होते हुए भी रोगी व्यक्ति जीवन के
आनंद से वंचित रह जाता है।
८. अति बूढ़ा: अत्यंत वृद्ध व्यक्ति भी मृत समान होता है, क्योंकि वह अन्य
लोगों पर आश्रित हो जाता है। शरीर और बुद्धि, दोनों अक्षम हो जाते हैं। ऐसे में कई बार वह स्वयं और उसके
परिजन ही उसकी मृत्यु की कामना करने लगते हैं, ताकि उसे इन कष्टों से मुक्ति मिल सके।
९. सतत क्रोधी: २४ घंटे क्रोध में रहने वाला व्यक्ति भी
मृतक समान ही है। ऐसा व्यक्ति हर छोटी-बड़ी बात पर क्रोध करता है। क्रोध के कारण
मन और बुद्धि दोनों ही उसके नियंत्रण से बाहर होते हैं। जिस व्यक्ति का अपने मन और
बुद्धि पर नियंत्रण न हो,
वह जीवित होकर भी
जीवित नहीं माना जाता।
१०. अघ खानी: जो व्यक्ति पाप कर्मों से अर्जित धन से अपना
और परिवार का पालन-पोषण करता है, वह व्यक्ति भी मृत समान ही है। उसके साथ रहने वाले लोग भी उसी
के समान हो जाते हैं। हमेशा मेहनत और ईमानदारी से कमाई करके ही धन प्राप्त करना
चाहिए। पाप की कमाई पाप में ही जाती है और पाप की कमाई से नीच गोत्र, निगोद की
प्राप्ति होती है।
११. तनु पोषक: ऐसा व्यक्ति जो पूरी तरह से आत्म संतुष्टि और
खुद के स्वार्थों के लिए ही जीता है, संसार के किसी अन्य प्राणी के लिए उसके मन में कोई संवेदना
न हो, ऐसा व्यक्ति भी
मृतक समान ही है। जो लोग खाने-पीने में, वाहनों में स्थान के लिए, हर बात में सिर्फ यही सोचते हैं कि सारी चीजें
पहले हमें ही मिल जाएं, बाकी किसी अन्य
को मिलें न मिलें, वे मृत समान होते
हैं। ऐसे लोग समाज और राष्ट्र के लिए अनुपयोगी होते हैं। शरीर को अपना मानकर उसमें
रत रहना मूर्खता है, क्योंकि यह शरीर
विनाशी है, नष्ट होने वाला
है।
१२. निंदक: अकारण निंदा करने वाला व्यक्ति भी मरा हुआ होता
है। जिसे दूसरों में सिर्फ कमियाँ ही नजर आती हैं, जो व्यक्ति किसी के अच्छे काम की भी आलोचना
करने से नहीं चूकता है, ऐसा व्यक्ति जो
किसी के पास भी बैठे, तो सिर्फ किसी न
किसी की बुराई ही करे, वह व्यक्ति भी
मृत समान होता है।
१३. परमात्म विमुख: जो व्यक्ति ईश्वर यानि परमात्मा का
विरोधी है, वह भी मृत समान
है। जो व्यक्ति यह सोच लेता है कि कोई परमतत्व है ही नहीं; हम जो करते हैं, वही होता है, संसार हम ही चला रहे हैं, जो परमशक्ति में
आस्था नहीं रखता, ऐसा व्यक्ति भी
मृत माना जाता है।
१४. श्रुति संत विरोधी: जो संत, ग्रंथ, पुराणों का
विरोधी है, वह भी मृत समान
है। श्रुत और संत, समाज में अनाचार
पर नियंत्रण (ब्रेक) का काम करते हैं। अगर गाड़ी में ब्रेक न हो, तो कहीं भी गिरकर
एक्सीडेंट हो सकता है। वैसे ही समाज को संतों की जरूरत होती है, वरना समाज में
अनाचार पर कोई नियंत्रण नहीं रह जाएगा।
तो यह थे 14 अवगुण जो व्यक्ति को जीवित रहते
हुए भी मृत बना देते थे, अच्छा होगा कि यह अवगुण अगर हैं तो इन्हें जल्दी से त्याग
दिया जाए।
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