शुक्रवार, 2 सितंबर 2022

काम वासना और अध्यात्म



जय श्री कृष्णा

नमस्कार 

साथियों, आज के इस विडियो में हम जानेंगे कि काम वासना पर अंकुश कैसे लगाया जा सकता है। अगर मन में काम वासना जागृत हो तो हमें क्या करना चाहिए। काम वासना शांत होते ही क्यों मन में एकाग्र बढ़ जाती है। काम वासना के बाद खुद को दोषी महसूस करना क्या है।  काम वासना से मुक्ति पाने में अध्यात्मिकता की क्या भूमिका है। तो चलिए शुरू करते हैं। 



काम, क्रोध, मद और लोभ यह मनुष्य के चार शत्रु माने गए हैं। इन पर काबू करने वाला मनुष्य ही जन्म मरण के फेर से मुक्त हो पाता है। यह चारों शत्रु इतने प्रबल हैं कि मनुष्य चाहकर भी इन्हें रोक नहीं सकता है। बड़े-बड़े ऋषि मुनि तक इस काम के आगे अपनी सालों की तपस्या भंग कर बैठे। विश्वामित्र और मेनका, मार्केंडेय और उर्वशी जैसे कई प्रकरण वेदों में हैं। 

काम के इतने ताकतवर होने के पीछे वजह यह है कि ये शक्तियां खुद भगवान ने बनाई है। इसी को माया कहा जाता है। आप लाख कोशिश करें, लेकिन आप इन पर काबू तब तक नहीं कर सकते हैं, जब तक भगवान स्वयं आपकी मदद न करें। जब हम भगवान से प्रार्थना करते हैं, तब भगवान अपनी इन शक्तियों को आदेश देते हैं कि फलां आत्मा अध्यात्मिक हो रही है या वो मेरे पास आना चाह रही है तो उसके मार्ग पर बाधा न बनों तभी आप इस से मुक्ति पाते हैं।

कहने का अर्थ है कि काम, क्रोध, मद और लोभ भगवान की ऐसी शक्तियां है, जिसके कारण हम कई बाधाओं में पड़ते हैं और फिर हम भगवान को याद करते हैं। यही भगवान चाहते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो काम, क्रोध मद लोभ के कारण ही मनुष्य में अध्यात्म का भाव जागता है और वो संसार के रहस्य को समझने की शक्ति को पुन : प्राप्त करता है। इसलिए यह शक्तियां बुरी नहीं है। लेकिन जब मनुष्य मन के अधीन होकर इनका अत्यधिक प्रयोग शुरू कर देता है, दिन रात उसके मन में काम के प्रति विचार पनपने लगते हैं तो यह शक्ति काम वासना जैसी बुरी प्रवृत्ति में बदल जाती है। 


आइए समझते हैं काम क्या है

सृष्टि चलाने के लिए ब्रह्मा जी ने कुछ नियम बनाए थे। इन िनयमों को 100 अध्याय में उपदेश देकर बताया गया था। इन उपदेशों के कुछ हिस्सों से ही मनु ने मनुस्मृति, बृहस्पति ने अर्थशास्त्र और नंदी ने कामशास्त्र की रचना की। कामशास्त्र को आचार्य वात्सायन ने दोबारा संकलित किया। कामसूत्र में ब्रह्वा जी के बनाए वो नियम थे, जो संसार में प्राणियों की उत्पत्ति से जुड़े रहेंगे। यानी प्राणियों की उत्पत्ति कैसे होगी। प्राणियों का प्रमाद कैसे होगा। और कैसे इस प्रमाद के कारण मनुष्य भगवान को भूलेगा और यही प्रमाद उन्हें पुन: ईश्वर के पास आने का रास्ता दिखाएगा। 

 कामशास्त्र के अनुसार दो व्यक्तियों के बीच हुए अकार्षण को काम कहा गया है।


काम अगर जनेंद्री तक सीमित है तो यह सामान्य है, लेकिन जैसे ही यह मन में हावी होने लगता है तो यह काम वासना में बदल जाता है जो कि घातक हो जाती है। काम और काम वासना में अंतर है। वासना किसी को पाने की वह लत है जो कभी खत्म नहीं होती है। जबकि काम संसार को चलाने के लिए प्राणियों की उत्तपत्ति से जुड़ा है। 

हमारे चंचल मन के कारण काम वासना हावी होती है। इसलिए हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि आपका मन आपको काबू में न रखे, बल्कि वो आपके काबू में रहे। मन को काबू में रखने के लिए बुद्धि होती है। बुद्धि वो शक्ति है जिससे हम मन को काबू में कर सकते हैं। बुद्ध को ताकतवार बनाते हैं विचार, अच्छे विचार और सकारात्मक सोच से ही बुद्धि ताकतवार होगी। और तब ही वो चंचल मन को नियंत्रित रखेगी। 

मन हमारी इंद्रियों को नियंत्रित रखता है। इसलिए अगर आपकी बुद्धि ताकतवार होगी तो मन नियंत्रित रहेगा और अगर मन काबू में रहेगा तो इंद्रिया स्वयं काबू में आ जाएंगी। 

मन में आने वाले विषय इस बात पर निर्भर करते हैं कि आप कहां बैठते हैं, आप क्या देखते हैं और आप कैसा भोजन करते हैं यह सारी बातें आपके मन की दिशा तय करेंगी । अगर आप तामसिक भोजन लेते हैं और अश्लील पिक्चर देखते हैं तो फिर आपका मन काम के प्रति भागेगा। वहीं अगर आप अध्यात्मिक हैं, भगवान के प्रति सेवाभाव रखते हैं। तो मन में भी वहीं विषय आएंगे। 

काम वासना पर कैसे लगे अंकुश 

आप जैसे ही काम वासना को तृप्त करेंगे यह फिर और तेजी से आएगी। यानि हर बार पहले से ज्यादा मजबू स्थिति में। इसलिए विचारों को भगवान में लगाएं। खुद को व्यस्त रखें।  अगर पढ़ने की उम्र हैं तो तो पढ़ाई करें। युवा है तो जॉब करें, पैसा कमाने पर ध्यान दें, बुजुर्ग है तो भगवान को और ज्यादा समय दें।  कुछ भी जो सार्थक हो जिसका भविष्य में उपयोग दिख रहा हो उसमें खुद को व्यस्त करें। 

क्योंकि अगर आप अपनी इंद्रियों को व्यस्त नहीं रखेंगे तो यह मन उनको काम वासना में लिप्त कर लेगा। और तब आप इसमें फंसते चले जाओगे। 

  

वासना तृप्ति के बाद खुद को दोषी महसूस होना क्या है

अगर आप न चाहते हुए भी काम वासना की तृप्ति कर लेते हैं तो उसके बाद आपके मन को क्षणिक सुख प्राप्त होता है, लेकिन बुद्धि आपको दोषी होने का एहसास करवाती है। क्योंकि आपको लगता है कि इतनी मेहनत बेकार हो गई। हमारी यही सोच काम को दोबारा जागृत करती है। इसलिए इस पर सोचना और खुद को दोष देना बंद करें। सोचे जो हुआ वो भी भगवान की मर्जी थी। लेकिन गलती और सीख एक या दो बार तक ही सीमित रखें। बारंबार यही प्रक्रिया न हो इसके लिए आप अपनी बुद्धि को विकसित और बलवान बनाएं ताकि वो मन को खींच कर वहां ले जाए जहां आप खुद को ले जाना चाहते हैं। 

अगर आप अध्यात्ममिकता की ओर लगाव रखते हैं तो यह मन भी इसी ओर जाएगा। याद रहे आप जैसा सोचते हैं वैसा ही होता। क्योंकि प्रकृति आपको देने के लिए तत्पर रहती है, आप उससे जो भी सच्चे मन से मांगते हैं वो आपको मिलता है। 


यह आप पर निर्भर करता है कि आप क्या लेना चाहते हैं। 


इस सबके बावजूद हमें यह ध्यान रखना है कि हम इन उपायों से काम पर काबू पाने का प्रयास मात्र ही कर पाते हैं। लेकिन इस पर काबू पाने के लिए ईश्वर की कृपा होना बहुत जरूरी है। बगैर उसकी कृपा के हम इन शत्रुओं पर विजय नहीं पा सकते हैं।  

हमारे समाज में किशोरावस्था से लेकर आगे तक काम वासना को हैंडल करने की कला सिखाई, बताई या पढ़ाई नहीं जाती। इस विषय पर सभी अंधेरे में रहते हैं। जो छुप कर पढ़ लिया इंटरनेट आदि से या फ्रेंड्स ने ज्ञान दे दिया उसी पर निर्भर रहते हैं। रिलेशनशिप के बारे में युवा लोग एक अज्ञानी की तरह प्रवेश करते हैं। वहां दोनों नासमझ हैं। जबकि यह विषय जीवन से इतना गहरा जुड़ा है कि इसको इग्नोर नहीं कर सकते। 

यौन शिक्षा एक अलग विषय है जो स्कूल पढ़ाया जाना शुरू हो गया है, मगर वह बिल्कुल अलग विषय है। जीवन के मैदान में सम्बन्धों के बारे में व्यावहारिक ज्ञान के लिए आज भी शून्य व्याप्त है। इसलिए बच्चे किशोर, युवा भटक रहे हैं।  इस विषय पर कक्षा छह से हलका फुल्का ज्ञान देकर समझाया जाना चाहिए ताकि बारहवीं तक मानसिक रूप से बच्चे मजबूत हो सके और उनको कोई बहका ना सके 

कुछ त्वरित उपाय जो असरदार हैं वे ये हैं:

अश्लील बात करना बन्द करें।

अश्लील सीन वाली फिल्म छोड़ दें।

अश्लील गीत न सुनें।

व्यायाम करें।

गीता पढ़ना शुरू करें।


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