जय श्री कृष्णा
सभी साथियों को नमस्कार
आप देख रहे हैं कालचक्र
आज हम जानेंगे जनेऊ से जुड़े कुछ ऐसे सवाल जिनको लेकर लोगों के मन में संशय रहता है। इसके अलावा जनेऊ को पहनने के वैज्ञानिक दृष्टि से क्या लाभ हैं। जनेऊ हमें क्यों पहनाना चाहिए। सहवास करते समय जनेऊ को उतारना ठीक है या पहने रहना है। इन सभी सवालों के जवाब आपको यह विडियो देखने के बाद मिल जाएंगे। तो देखते रहिये कालचक्र
साथियों,
आपने देखा होगा कि बहुत से लोग बाएं कांधे से दाएं बाजू की ओर एक कच्चा धागा लपेटे रहते हैं। इस धागे को जनेऊ कहते हैं। जनेऊ तीन धागों वाला एक सूत्र होता है। जनेऊ को संस्कृत भाषा में 'यज्ञोपवीत' कहा जाता है।
इसे गले में इस तरह डाला जाता है कि वह बाएं कंधे के ऊपर रहे। जनेऊ में मुख्यरूप से तीन धागे होते हैं। यह तीन धागे देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक होते हैं । यह गायत्री मंत्र के तीन चरणों का प्रतीक है। यह तीन आश्रमों का प्रतीक है। संन्यास आश्रम में यज्ञोपवीत को उतार दिया जाता है।
नौ तार : यज्ञोपवीत के एक-एक तार में तीन-तीन तार होते हैं। इस तरह कुल तारों की संख्या नौ होती है। एक मुख, दो नासिका, दो आंख, दो कान, मल और मूत्र के दो द्वारा मिलाकर कुल नौ होते हैं।
पांच गांठ : इसके अलावा में जनेउ में पांच गांठ लगाई जाती है जो ब्रह्म, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक है। यह पांच यज्ञों, पांच ज्ञानेद्रियों और पंच कर्मों का भी प्रतीक भी है। प्रत्येक आर्य जनेऊ पहन सकता है, बशर्ते कि वह उसके नियमों का पालन करे।
जनेऊ पहनने का लाभ
जीवाणु और बैक्टीरिया से बचाव : जो लोग जनेऊ पहनते हैं और इससे जुड़े नियमों का पालन करते हैं वह मल मूत्र त्याग करते वक्त अपना मुंह बंद रखते हैं। इसकी आदत पड़ जाने के बाद लोग बड़ी आसानी से गंदे स्थानों पर पाए जाने वाले जीवाणु और बैक्टीरिया ओं के प्रकोप से बच जाते हैं।
गुर्दे की सुरक्षा जनेऊ पहनने वाले बैठकर ही जलपान करना करते हैं। अर्थात खड़े रहकर पानी नहीं पीना चाहिए। और बैठकर ही मूत्र त्याग करते हैं। इससे किडनी पर प्रेशर नहीं पड़ता।
हृदय रोग और ब्लड प्रेशर से बचाव : शोध के अनुसार मेडिकल साइंस ने भी यह पाया है कि जनेऊ पहनने वाले लोगों को हृदय रोग और ब्लड प्रेशर की आशंका अन्य लोगों के मुकाबले कम होती है शरीर के खून में प्रभाव को भी कंट्रोल करने में मददगार होता है।
लकवे से बचाव: जनेऊ पहनने से लकवे की संभावना भी कम हो जाती है। क्योंकि जनेऊ धारण करने वाले को लघु शंका व मल त्याग करते समय दांत पर दांत रख कर बैठना चाहिए, ऐसा करने से आदमी को लकवा नहीं मारता।
कब्ज से बचाव :जनेऊ को कान के ऊपर कसकर लपेटने से कान के पास से गुजरने वाली उन नसों का भी दबाव पड़ता है। जिनका संबंध सीधे आंतों से होता है। इस कारण कब्ज की शिकायत नहीं होती है।
स्मरण शक्ति की रक्षा : कान पर हर रोज जनेऊ रखने और कसने से स्मरण शक्ति सही बनी रहती है। क्योंकि कान पर जनेऊ लपेटने से कान पर दबाव पड़ता है जिससे दिमाग की नसें एक्टिव हो जाती हैं।
बुरी आत्माओं से रक्षा : ऐसा मानना है कि जनेऊ पहनने वाले के पास बुरी आत्माएं नहीं भटकती, इसका कारण यह है कि जनेऊ धारण करने वाला खुद पवित्र आत्मरूप बन जाता है, और उसमें आध्यात्मिक ऊर्जा का विकास होता है।
हमारे ग्रंथो में ब्रह्मचर्य के नियम में जनेऊ पहनना अनिवार्य माना गया है। ब्राह्मण के दाहिने कान में वायु, चंद्रमा, मित्र, आदित्य, वरुण,अग्नि आदि देवताओं का वास होता है। इसीलिए इसे दाहिने कान पर मलमूत्र त्याग के समय कान पर चढ़ाया जाता है ताकि अशुद्ध न हो।
अब आते हैं आपके सवाल के जवाब की ओर सहवास के समय जनेऊ धारण करना चाहिए या नही?
सहवास के समय जनेऊ पहनना अनिवार्य माना गया है जैसे आप पहनते हो वैसे ही सहवास के समय धारण किए रहना चाहिए।
अगर जनेऊ खुद से निकल जाता है तो नया जनेऊ धारण कर सकते लेकिन सहवास के समय आप खुद से जनेऊ को नहीं निकल सकते वरना जो भी जनेऊ की पवित्रता है वो समाप्त हों जाएगी।
शारीरिक सम्बन्ध बनाते समय जनेऊ धारण किये रहना चाहिये अपितु उसे अपने गले में या कान में लपेट लेना चाहिये। जनेऊ का योनी या लिङ्ग से स्पर्श न हो इसका ध्यान रखा जाना चाहिये। जनेऊ को योनीस्राव या वीर्य या मल-मूत्र आदि न लग जाये इसका ध्यान रखा जाना चाहिये। यही कारण है कि लघुशंका या मलविसर्जन के समय जनेऊ को कान में लपेटा जाता है और हाथ पांव धोने के पश्चात् ही कान से निकाला जाता है।
पत्नी के साथ सहवास गृहस्थ के लिए धर्म है। इसलिए इसे कार्य को करते वक्त जनेऊ को उतारने की आवशयकता नहीं है। बशर्तें कि वो अशुद्ध न हो। इसका ध्यान रखना है, अशुद्ध होने पर जनेऊ को तुरंत बदल देना चाहिए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Thanks