कानपुर : उत्तरप्रदेश में कानपुर जिले के भीतरगांव ब्लॉक के बेहटा बुजुर्ग गांव का यह मंदिर रहस्यमयी धरोहर है। उत्तर भारत में दक्षिण शैली का बना यह एक मात्र मंदिर है। मंदिर के अंदर नायाब शिल्पकला में निर्मित भगवान जगन्नाथ की काफी ऊंचे सिंघासन में विराजमान प्रतिमा है। सिंघासन का निचला हिस्सा शिवलिंग के अरघे के आकार का है। इस मंदिर को मानसून मंदिर भी कहा जाता है। मंदिर की छत से टपकने वाली पानी की बूंदों का रहस्य अनोखा है। भीषण गर्मी में गर्भ गृह की छत पर लगे एक विशेष पत्थर से इन बूंदों का टपकना और बरसात आते ही सूख जाना किसी आश्चर्य से कम नहीं है। मानसून आने के आठ दिन पहले ही टपकने वाली ये पानी की बूंदे मानसून आने का संकेत देती हैं। गांव के लोगों की मानें तो इन बूंदों का आकार बताता है कि मानसून अच्छा रहेगा या कमजोर। इस इलाके में काफी समय से काम कर रहे लोगों का भी कहना है कि मंदिर को लेकर उनका अटूट विश्वास है।
यह मंदिर बाहर से बौद्ध स्तूप जैसा दिखाई देता है। मंदिर के ऊपर बने दो कलशनुमा शिखरों को देखने पर यह एक रथाकर चित्र बनाते हैं। इसके अलावा मंदिर के बाहरी हिस्से को अगर ध्यान से देखें तो यह कमल की पंखुड़ियों से घिरा दिखेगा। मंदिर के शिखर पर एक लौह चक्र है। यह चक्र मंदिर निर्माण के समय लगाया गया होगा। लोहे का होने के बावजूद आज तक इसमें जंग नहीं लगा। भारतीय पुरातत्व विभाग से यहां तैनात सुबोध शुक्ला की मानें तो यह चक्र उसी लोहे से बना है, जिससे दिल्ली के महरौली में लौह स्तंभ बनाया गया है। इस मंदिर के निर्माण और समय को लेकर कोई ठोस जानकारी नहीं मिल सकी है।
विशेष धार्मिक, ऐतिहासिक और भौगोलिक तथ्यों से भरा ये मंदिर 21वीं सदी के विज्ञान के लिए बड़ी चुनौती है।अलग-अलग देशों से कई इतिहासकार, वैज्ञानिक यहां आ चुके हैं, लेकिन कोई इसके पीछे के राज का खुलासा नहीं कर सका है। भारतीय पुरातत्व ने कार्बन डेटिंग से इस मंदिर का निर्माण नवीं शताब्दी में होने की बात कही है।
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