मत्सय, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के अंतर्गत गठित कामधेनु आयोग 25 फरवरी को गाय पर एक एग्जाम करवाने जा रहा है। कामधेनु गो विज्ञान प्रचार प्रसार परीक्षा को पास करने पर सफल अभ्यर्थी को प्रमाणपत्र और कैश इनाम में दिया जाएगा। एग्जाम का उद्देश्य गाय को न सिर्फ राष्ट्रीय स्तर बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाना है। इस एग्जाम में आने वाले प्रश्न बेहद जानकारी परक है। देशी गाय और विदेशी गाय के अंतर, वेदों में गाय की भूमिका और महत्व जैसे कई प्रमुख विषय पर सवाल पूछे जाने हैं। कामधेनु आयोग की तरफ से की गई
यह पहल सराहनीय है। इससे निकट भविष्य में सरकार गो विज्ञान को पाठ्यक्रमों में
शामिल भी करेगी।
मेरा मानना है कि गाय के बारे में
देश के सभी नागरिकों को जानकारी होनी ही चाहिए। बचपन से ही हमें गाय पर जानकारी
देने के लिए स्कूलों में निबंध लिखना सिखाया जाता रहा है। शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति
हो जिसने बचपन में गाय पर निबंध न लिखा हो। वैदिक काल से ही गाय को पूजनीय माना
गया है। गाय को पशु कहना भी ठीक नहीं है। तभी तो वेदों में कहा गया है कि-
तिलं न धान्यम, पशुव: न गाव:
अर्थात तिल धान्य नहीं और गाय पशु
नहीं है।
‘गो सर्व
देवमयी, गो सर्व तीर्थमयी’
अर्थात गाय में सभी देवों के गुण समाय हुए हैं और सभी तीर्थ स्थल की महिमा व्याप्त है। मुस्लिम धर्मशास्त्री अल गजाली (1058-1111) के अनुसार भी गाय का दू ध स्वास्थ्य वर्धक, उसका घी औषधि और मांस बीमारी देने वाला है। ज्ञात हो कि भारत में करीब 54 प्रकार की देशी गाय की प्रजातियां हैं। देशी गाय विदेशी गायों की तुलना में बहुत ही उपयोगी है। देशी गाय का दूध जहां शिशुओं के लिए लाभकारी होता है, वहीं विदेशी गाय का दूध नुकसानदायक होता है।
भारत में
भले ही देशी और विदेशी गाय के दूध में अंतर न किया जाता हो, लेकिन अमेरिका में इस अंतर
को A1 और A2 में वर्गीकत किया गया है। इसके मुताबिक देशी गाय से मिलने वाला दूध A2
कहलाता है, जबकि विदेशी गाय का दूध A1 कहा
जाता है। A2 दूध में बीटा केसीन की मौजूदगी रहती है। जोकि कई रोगों में फायदेमंद होता है। जबकि जर्सी
और एचएफ गाय से मिलने वाले दूध A1 में बीटा केसीन का यह अनुवांशिक रूप नहीं होता है।
विदेशी गाय के दूध में मिलने वाला बीटा कैसोमोर्फिन
7(BCM7) नामक रसायन कैंसर,
मधुमेह, ह्रदय रोग और अस्थमा जैसे रोगों के लिए जिम्मेदार है।
देशी गाय
के दूध की गुणवत्ता प्रथ्वी पर सबसे अच्छी है, हालांकि इसकी उत्पादकता विदेशी गाय की
तुलना में कम है। देशी गाय के पंचगव्य का प्रयोग वेदों में बताया गया है, साथ ही वैज्ञानिक
शोध में भी इसकी पुष्टि हुई है। वहीं विदेशी गाय का गोबर और मूत्र प्रयोग लायक नहीं
होता है। जबकि देशी गाय का गोबर और मूत्र के प्रयोग को आयुर्वेद में औषधि के रूप में
बताया गया है। इसके अलावा भारतीय गाय के दूध में ओमेगा-3 का उच्च स्तर होता है, जो
कॉलेस्ट्राल को साफ रखता है, वहीं विदेशी गाय के दूध में कॉलेस्ट्रॉल पर कोई सकारात्मक
प्रभाव नहीं होता है, बल्कि यह खराब कॉलेस्ट्रॉल को बढ़ाने के रूप में जाना जाता है।
भारतीय
गाय के दूध में मौजूद सेरेब्रोसिड्स मस्तिष्क की शक्ति को बढ़ता है। इसमें मौजूद स्ट्रोंटियम
शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ता है। इसका दूध, दही, घी, गोबर, मूत्र सभी में औषधीय
गुण होते हैं। देशी गाय की पहचान उसका पीठ में उठा हुआ कूबड़, गले के नीचे लटकती खाल
(गलकम्ब) होता है। इसका कूबड़ सूर्य से विटामिन डी अवशोषित कर अपने दूध में छोड़ने
के लिए जाना जाता है। यही वजह है कि सिर्फ गाय के दूध में ही विटामिन डी पाया जाता
है। विदेशी गाय में यह नहीं होता है।
चरक संहिता में कहा गया है कि कुष्ठ रोग, खुजली, प्लीहा, कृमि रोग, ब्रेन, ट्यूमर जैसे रोग जल की अशुद्धि एव अशुद्ध खाद्य से होते हैं। इन रोगों के निवारण में गो मूत्र अत्यंत लाभकारी बताया गया है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Thanks