सोमवार, 11 जून 2018

मेरी तीसरी बद्रीनाथ यात्रा

इस बार मेरी तीसरी बद्रीनाथ यात्रा थी। 2008, 2012 और अब 2018 की। इस बार की यात्रा पिछली यात्राओं की तुलना में ज्यादा सुखद थी। क्योंकि सड़कें काफी अच्छी थी। लेकिन जोशीमठ में जो 12-13 किलोमीटर लंबा जाम मिला उसने मन को विचलित कर दिया। हालांकि इसकी वजह जाम नहीं था, बल्कि गाड़ियों से निकलने वाला काला धुंआ था। हरे भरे पहाड़ों के बीच कार्बन मोनोऑक्साइड का जो गुबार महसूस किया, उसने सोचने पर मजबूर कर दिया कि अब लोग शांति और स्वस्थ हवा के लिये किस हिल स्टेशन जाएंगे। क्योंकि बद्रीनाथ, केदारनाथ जैसी दुर्गम यात्राएं भी अब आसानी से की जा सकती हैं। यात्रा सुगम होना तो ठीक होता है, लेकिन इससे हम उन जगहों को भी प्रदूषित कर देते हैं, जहां प्रकति अपने को सुरक्षित रखने का प्रयास करती है।
 इन जगहों पर भी तेजी से आबादी बढ़ रही है। नतीजन अब पहाड़ों पर पहले की तुलना में खेती भी बढ़ी है। पहाड़ों पर कन्टूर फर्मिंग ( सीढ़ी नुमा खेत ) होती है। इसलिये यहां के लोगों ने भी पहाड़ों को काटना पहले से ज्यादा कर दिया है।
पहाड़ों पर सालों से खड़े चीड़, अखरोट, बादाम, सेब और ना जाने कितनी प्रजातियों के पेड़ बड़ी संख्या में सड़क बनाने के लिये काटे जा रहे हैं। यह काम अब यहां निरन्तर हो रहा है। चीड़ का एक पेड़ तैयार होने में 15 से 20 साल लगते हैं। लेकिन कटाई में कोई पैमाना लागू नहीं होता है। देश का यह हाल तब है, जब प्रदूषण के नुकसान रोजाना सामने आते जा रहे हैं । नई टिहरी की आबादी पुरानी टिहरी से कही ज्यादा है। हमने अपनी यात्रा में देश का सबसे बड़ा डैम टिहरी भी देखा।  टिहरी डैम वाकई अद्भुत है। कई किलोमीटर तक फैले इस डैम के ऊपर एक छोटा ब्रिज भी है। इस ब्रिज से सिर्फ 8 टन की पासिंग है। यानी सिर्फ छोटी गाड़ियां ही निकलती है। ब्रिज में एक बार में एक गाड़ी ही जाती है। दूसरे के लिए जगह नहीं है। नीचे डैम में पानी भरा है। यह डैम पहाड़ों के बीच में है। ठीक वैसे ही जैसे केदारनाथ के ऊपर रास्ता अवरुद्ध होने से कृत्रिम झील का निर्माण हुआ था। वहां के लोगों की मानें तो अगर कभी यह डैम टूटा तो दिल्ली की सड़कों में 5 फुट तक पानी भर जाएगा। खैर.. यह ब्रिज आपको इस रास्ते में तभी मिलेगा जब आप गंगोत्री से बद्रीनाथ सीधे आएंगे। यानी गंगोत्री से वापस रुद्रप्रयाग नहीं आना है। बल्कि गंगोत्री से केदार जाने वाला रास्ता लेना होगा और बद्रीनाथ आना होगा। यह रास्ता काफी सूनसान है। यहां भालू अक्सर दिख जाते हैं। हालांकि रिस्की भी है। चलती गाड़ी में इनसे खतरा नहीं है। लेकिन रुकने पर कुछ भी हो सकता है। 2008 और इस बार की यात्रा में सबसे बड़ा अंतर सड़कों का था। तब सड़क संकरी थी और अब तो 2 वे है। कुल मिलाकर प्रकति के साथ छेड़छाड़ बढ़ती जा रही है। जो खतरनाक है। हालांकि 2013 की त्रासदी ने प्रकति को उसके मूल स्वरूप में ला दिया था, लेकिन हमने उसको दुबारा आने की कि चुनौती दे दी है।

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