शुक्रवार, 28 अगस्त 2020

सीढ़ियों में ग्रेनाइट/ मार्बल/ टाइल्स क्या लगवाना ठीक है

 


दोस्तों अक्सर जब हम घर पर जीने अथवा सीढ़ियों को बनवाते हैं तो उस पर मार्बल लगाया जाए अथवा ग्रेनाइट या फिर टाइल्स लगाने को लेकर कन्फ्यूज हो जाते हैं। तो आज के इस विडियो में मैं आपके इस कन्फ्यूजन को हमेशा के लिए खत्म कर दूंगा। पहले बात करते हैं टाइल्स पर। इसमें कोई शक नहीं कि आज हैवी ड्यूटी टाइल्स मार्केट में उपलब्ध है, यह टाइल्स लगाई भी खूब जा रही है, लेकिन दोस्तों जीने में हो सके तो इसे लगवाने से बचें। क्योंकि टाइल्स सरफेस और वॉल के लिए तो ठीक है, लेकिन जीने के लिए नहीं। क्योंकि जीने से भारी सामान का आना जाना भी होता है। सीढ़ियों पर चढ़ते उतरते समय हमारे पैर सीढ़ियों के किनारों पर ज्यादा पड़ते हैं ऐसे में टाइल्स निकलने अथवा टूटने का खतरा बना रहता है। किरायेदार के आने और जाने में उसके घर का हैवी सामान भी जीने के माध्यम से ही चढ़ता उतरता है। ऐसे में जीने का मजबूत होना बहुत जरूरी हो जाता है।

 तो दोस्तों दूसरे नंबर पर आता है मार्बल। मार्बल की सरफेस स्मूथ होती है। यह आंखों को स्मूथनेस का एहसास करवाता है। जहां भी लगेगा सरफेस को कूल भी रखता है।  अब तक तो मार्बल का प्रयोग सीढ़ियों के लिए खूब होता था। लेकिन अब इसमें बदलाव आ रहा है। उसकी सबसे बड़ी वजह है कि मार्बल समय के साथ पीला पड़ता है, और उसमें नींबू का रस, खटाई आदि के गिरने के दाग भी पड़ जाते हैं। हालांकि ऐसा जल्दी नहीं होता , लेकिन एक टाइम बाद उसके सरफेस में गंदगी का एहसास होने लगता है। ऐसे में हमें मार्बल को आठ से दस साल में पॉलिश करवाना ही पड़ेगा। पॉलिश का खर्च भी पत्थर की खरीद के करीब करीब बराबर ही होता है। उत्तरप्रदेश में कानपुर में सबसे बड़ी पत्थर मंडी आलूमंडी में है। मार्बल की शुरूआत 30 से 80 रुपये वर्गफुट तक होती है। जबकि पॉलिश का खर्च 30 से 60 रुपये तक आता है। ऐसे में ओवरआल मार्बल का खर्च भी 85 रुपये वर्गफुट का औसत आता है। इसलिए अगर बजट कम हो और सीढ़ियों का प्रयोग सिर्फ घरेलू हो तो मार्बल को बुरा नहीं कहा जा सकता है। 

तीसरे नंबर पर आता है ग्रेनाइट। ग्रेनाइट का सरफेस काफी हार्ड होता है। क्योंकि यह नैचुरल चट्टान होती है। चट्टान को मशीन से काटने के बाद उसमें एक साइड मशीन से ही पॉलिश करके इसे तैयार किया जाता है। किचन टॉप पर ग्रेनाइट ही सबसे बेहतर विकल्प माना जाता है। ग्रेनाइट की चमक सबसे ज्यादा होती है। ऐसा में इसमें एलुमिनियम और लोहे के मौजूद होने से होता है। मार्बल की तुलना में ग्रेनाइट चीजों को कम ऑब्जर्व करता है। मतलब अगर आप नींबू के रस को मार्बल पर डालेंगे और फिर उसे पोछेंगे तो इसमें हल्का खुरखुरापन आएगा, क्योंकि यह नींबू के रस को ऑर्ब्जव करता है। जबकि ग्रेनाइट में कुछ भी डालें और फिर उसे कपड़े से पोछ दें तो उसमें कोई फर्क नहीं पड़ेगा। मार्बल की तुलना में ग्रेनाइट की लाइफ भी चार गुनी होती है। ग्रेनाइट सबसे बेस्ट है। आजकल इसको सीढ़ियों में लगाने का चलन काफी बढ़ा है। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि इसको लगाने के बाद पॉलिश का झंझट नहीं होता है। क्योंकि इसका सरफेस मशीन से पॉलिश किया हुआ मिलता है। इसके अलावा ग्रेनाइट मजबूती में भी मार्बल से ज्यादा होता है। ग्रेनाइट की शुरूआत 60 रुपये वर्गफुट से लेकर 1000 रुपये तक होती है। आजकल बाहर के देशों से भी ग्रेनाइट इंपोर्ट होता है। देश में राजस्थान से ग्रेनाइट मिलता है, जबकि ब्लैक ग्रेनाइट साउथ का अच्छा माना जाता है। शॉपिंग मॉल्स आदि में ग्रेनाइट की ही सीढ़ियां होती है। हालांकि इसका एक ड्रा बैक था कि चिकना होने से इसमें स्लिप करने के चांस होते हैं, लेकिन अब ग्रेनाइट में ग्रुप काटकर इसे एंटी स्किड किया जा सकता है। कहने का अर्थ है कि अगर बजट ठीक हो तो ग्रेनाइट ही जीने में लगाना चाहिए। क्योंकि पॉलिश खर्च मिलाकर करीब करीब बराबर ही खर्च आता है। 


अब बात कर लेते हैं कोटा पत्थर की

मजबूती के लिहाज से यह सर्वोत्तम है। लेकिन मजबूती और सुंदरता के लिहाज से ग्रेनाइट ही आगे है। रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म और उसकी सीढ़ियों में अक्सर कोटा पथर ही लगाया जाता है। हालांकि स्टेशन के बाहर की सीढ़ियों को बेहतर लुक देने के लिए ग्रेनाइट ही लगाया जाता है। बजट में यह सबसे कम में लगता है। इसमें भी पॉलिश की जरूरत होगी। इसकी चमक मार्बल और ग्रेनाइट से काफी कम होगी।


ग्रीन ग्रेनाइट क्यों न लगाएं

ग्रीन ग्रेनाइट सबसे सुंदर पत्थर है। लुक के लिहाज से यह काफी बेहतर है। लेकिन मजबूती के लिहाज से ग्रेनाइट की श्रेणी में सबसे कमजोर है। हालांकि इसकी मोटाई के हिसाब से इसकी मजबूती बढ़ जाती है। वर्तमान में ग्रीन ग्रेनाइट में ग्राउंटिंग कर टूट चुकी स्लैब को जोड़ दिया जाता है। ग्रीन होने से यह दरार आसानी से छिप जाती है। हालांकि सीढ़ियों के लिए इसे भी बेहतर विकल्प माना जाता है। 




शनिवार, 25 जुलाई 2020

कानपुर में घूमने के 10 बेहतरीन स्थान




नंबर वन पर है एलेन फारेस्ट चिड़िया घर। 



 यह चिड़ियाघर क्षेत्रफल (77 हेक्टेअर) की दृष्टि से भारत के सर्वोत्तम चिड़ियाघर में गिना जाता है। वर्तमान में यहां पर करीब 1200 जीव जंतु हैं। पिकनिक और जीव जंतुओं को देखने के लिए यह एक बेहतरीन स्थान है। 4 फरवरी 1974 से यह चिड़ियाघर पब्लिक के लिए खोला गया था। ब्रिटिश इंडियन सिविल सर्विस के सदस्य सर एलेन यहां पर फैले प्राकृतिक जंगलों में यह चिड़ियाघर खोलना चाहते थे। पर ब्रिटिश काल में उनका यह सपना पूरा नहीं हो सका। जब भारत सरकार द्वारा 1971 में यह चिड़ियाघर खोला गया तो उन्हीं के नाम पर इसका नाम रखा गया। इसके निर्माण में दो साल लगे थे। यहां का पहला जानवर घड़ियाल था। जो चंबल घाटी से लाया गया था। हालांकि इस जू की जान कहा जाने वाला और सबसे पुराना जानवर चिंपाजी छज्जू की 2019 में मौत हो जाने से अब यह काफी सूना लगता है, लेकिन अभी भी कई जानवर यहां हैं। इस चिड़ियाघर की सबसे खास चीज है यहां की वनस्पति। यहां आज भी कई दुर्लभ वनस्पतियां मौजूद है। जू में एक प्राकृतिक झील भी है। रात्रिचर जीव गृह भी इसमें है। यहां रात में देखे जाने वाले जीवों को रखा गया है। वर्ष 2014 से जू घूमाने के लिए जू में ट्रॉम ट्रेन मौजूद है। इसके अलावा मछली घर भी आकर्षण का केंद्र है।  जू के अंदर ही जानवरों का अस्पताल भी है। 2019 से जू में पॉलिथिन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इसलिए अगर आपके पास पॉलिथीन में कोई सामान है, तो उसे जू के बाहर ही काउंटर में जमा करवाकर अंदर जा सकते हैं।
नोट : मंडे को यह जू पब्लिक के लिए बंद रहता है। अगर आप मन बना रहे हैं तो इसकी ऑफिशियल वेबसाइट www.kanpurzoo.org पर विजिट कर ऑनलाइन टिकट भी ले सकते हैं।   

कैसे पहुंचेंगे : कानपुर स्टेशन और बस अड्डे से से आपको रावतपुर के लिए ऑटो-टेंपो और बस मिलेंगी। रावतपुर से चिड़ियाघर के लिए सीधे ऑटो टैंपो मिल जाते हैं। आप ओला ऊबर भी सीधे बुक कर सकते हैं। कानपुर स्टेशन से इसकी दूरी करीब 15 किलोमीटर है। 

इस्कॉन मंदिर 


इस्कॉन मंदिर को राधा माधव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। विश्व प्रसिद्ध इस्कॉन मंदिर को परिचय की जरूरत नहीं है। कानपुर में यह मंदिर मैनावती मार्ग बिठूर रोड पर है। 
बहुम कम लोगों को पता है कि इस्कॉन का पहला मंदिर भारत नहीं बल्कि न्यूयॉर्क में बना था। और उसका निर्माण एक अंग्रेज द्वारा किया गया था। अगर आप कृष्ण की भक्ति का भाव रखते हैं तो आप इस मंदिर में आ सकते हैं। मंदिर में आपको बहुत शांति मिलेगी।
कैसे पहुंचेंगे : कानपुर स्टेशन से आपको कल्याणपुर के लिए सीधे टैंपो और ऑटो मिलेंगे। 2021 से इस रूट पर मेट्रो में भी मिलेगी। आपको कल्याणपुर आईआईटी गेट से मंदिर के लिए टैंपो मिलेंगे। कानपुर स्टेशन से मंदिर की दूरी करीब 20 किलोमीटर है। 

ब्लू वर्ल्ड थीम वाटर पॉर्क

3. ब्लू वर्ल्ड थीम वाटर पॉर्क। यह पार्क कानपुर में बिठूर मंधना रोड में स्थित है। इसकी फुल टिकट अब तक 770 रुपये प्रति व्यक्ति है। इसमें कई तरह के झूले हैं। झूलों की संख्या इतनी ज्यादा है कि पूरा दिन भी घूमने के लिए कम पड़ सकता है। इसलिए यहां आठ बजे सुबह से एंट्री होना शुरू हो जाता है।  ब्लू वर्ल्ड कॉरपोरेशन प्राइवेट द्वारा स्थापित ब्लू वर्ल्ड सबसे बड़ा थीम पार्क है। यह पार्क 25 एकड़ में फैला है। इस पार्क में देश का सबसे बड़ा संगीत फौव्वरा डांस शो भी है। इस पार्क में और ज्यादा फन के लिए दिनों दिन नई चीजें जोड़ी जा रही है। मसलन जल्द ही इसमें डार्क जोन शुरू होने वाला है। इसमें बच्चों को काफी मजा आएगा। इसके अलावा यहां एक माल भी बनाया जाएगा। साथ ही भारत दर्शन के लिए एक थिएटर पूर्व में ही मौजूद है। इसके अलावा सेवन डी थिएटर भी खास है। इसमें इनडोर गेम प्लाजा, डायनासोर पार्क, सांस्कृतिक थिएटर, संग्रहालय है।

कैसे पहुंचे : कानपुर स्टेशन से इसकी दूरी करीब 22 किलोमीटर है। यहां आने के लिए कल्यानपुर आना होगा। स्टेशन से कल्यानपुर तक टैंपो मिलेंगे। कल्यानपुर से मंधना के लिए दूसरे टैंपो मिलेंगे। हालांकि अच्छा होगा कि कल्यानपुर से बिठूर के लिए ऑटो बुक कर लें। ताकि आप बिठूर के अन्य फेमस स्थानों को भी घूम सके।

जेके मंदिर


4. जेके मंदिर। यह मंदिर कानपुर के लाजपत नगर में है। इसका निर्माण जेके ट्रस्ट ने करवाया है। मंदिर में प्रवेश नि:शुल्क है। मंदिर की स्थापत्यकला और साफ सफाई इसका खास आकर्षण है। कानपुर में विवाह बंधन से पूर्व लड़की दिखाने के लिए यह उपयुक्त स्थान है। यह मंदिर राधाकृष्ण का है।
कैसे पहुंचे : कानपुर सेंट्रल स्टेशन से फजलगंज आएं। यहां से जेके मंदिर जाने के लिए सीधे टैंपो मिलेंगे। मंदिर के अंदर कैमरा नहीं ले जा सकते है। हालांकि बाहरी परिदृश्य को मोबाइल से कैद किया जा सकता है। 




मंगलवार, 2 जून 2020

Remove China Apps वायरल, 50 लाख से ज्यादा डाउनलोड

Remove China Apps वायरल, 50 लाख से ज्यादा डाउनलोड




चीनी ऐप्स को ऐंड्रॉयड फोन में पहचानने और डिलीट करने का दावा करने वाले ऐंड्रॉयड ऐप Remove China Apps देश में वायरल हो गया है। फिलहाल यह ऐप गूगल प्ले के टॉप फ्री ऐप्स की लिस्ट में अपनी जगह बना चुका है और अभी तक 50 लाख से ज्यादा बार इसे डाउनलोड किया जा चुका है। 17 मई से अब तक 50 लाख डाउनलोड का यह आंकड़ा इस ऐप की लोकप्रियता दिखाता है। कोरोना वायरस महामारी और भारत-चीन बॉर्डर पर विवाद जैसे कई कारणों के चलते देशभर में चीन के खिलाफ रोष है।



Remove China Apps क्या है?
Remove China Apps के डिवेलपर्स का दावा है कि ऐप को ऐजुकेशनल पर्पज के लिए डिवेलर किया गया है। यह ऐंड्रॉयड फोन यूजर्स को उनके फोन में इंस्टॉल ऐप्स के ओरिजिन देश को पहचानने में मदद करता है। हालांकि, जैसा कि नाम से पता चलता है यह सिर्फ चीनी कंपनियों द्वारा डिवेलप किए गए ऐप्स को पहचानने में मदद करता है और यूजर्स चाहें तो 'Remove China Apps के जरिए चीनी ऐप्स को अनइंस्टॉल कर सकते हैं। 

गौर करने वाली बात है कि 17 मई को गूगल प्ले पर लाइव होने वाले इस ऐप को अभी तक 50 लाख से ज्यादा यूजर्स डाउनलोड कर चुके हैं। गूगल प्ले पर इस ऐप को 4.9 रेटिंग के साथ अधिकतर पॉजिटिव रिव्यूज मिले हैं। इस ऐप को OneTouch AppLabs ने बनाया है। इसका दावा है कि यह जयपुर की कंपनी है और इसकी डोमेन ओनर साइट Whois के अनुसार इसकी वेबसाइट 8 मई को बनाई गई। यह ऐप गूगल प्ले स्टोर पर डाउनलोड करने के लिए मुफ्त उपलब्ध है। खास बात है कि ऐप को इस्तेमाल करने के लिए लॉगइन की जरूरत नहीं होती और यूजर्स अपने ऐंड्रॉयड फोन में चीनी ऐप्स को पहचानने के लिए Scan का विकल्प चुन सकते हैं।


अपने फोन से चीनी ऐप्स को ऐसे करें डिलीट
गूगल प्ले स्टोर से 'Remove China Apps' डाउन

मंगलवार, 5 मई 2020

क्या है सेक्सड सीमन

क्या है सेक्सड सीमन


एम्ब्रीयो ट्रांसफर टेक्नॉलजी (ETT) और सेक्सड सीमन टेक्नॉलजी ये दो नई तकनीकें एनिमल ब्रीडिंग के क्षेत्र में तेजी से आगे आ रही हैं | जिस तरह कभी आर्टिफीसियल इंसेमिनेशन (AI) की तकनीक ने एनिमल ब्रीडिंग का परिदृश्य ही बदल दिया था, उसी तरह आने वाले समय में ETT और सेक्सड सीमन टेक्नोलॉजी भी एनिमल ब्रीडिंग के क्षेत्र में गेम चेंजर साबित होंगी| आज महँगी और जटिल लगने वाली ये टेक्नोलॉजी कल AI की तरह ही एनिमल ब्रीडिंग का रोजमर्रा का हिस्सा होंगी |

क्या है सेक्सड सीमन
सामान्य सीमन में x वा y दोनों ही तरह के क्रोमोसोम को कैरी करने वाले स्पर्म होते हैं | यानी एक ही सीमन सैंपल में कुछ स्पर्म x क्रोमोसोम वाले होते हैं तथा कुछ स्पर्म क्रोमोसोम y वाले होते हैं | ऐसे सीमन से AI करने पर यदि x क्रोमोसोम वाला स्पर्म अंडे को फर्टिलाइज करता है तो बछिया पैदा होती है और यदि y क्रोमोसोम वाला क्रोमोसोम अंडे को फर्टिलाइज करता है तो बछड़ा पैदा होता है |

सामान्य सीमन से इतर सेक्सड सीमन में सिर्फ एक ही तरह के क्रोमोजोम ( x या y ) को कैरी करने वाले स्पर्म होते हैं | यानी एक सीमन सैंपल में सभी स्पर्म x क्रोमोसोम कैरी करने वाले होते हैं या सभी स्पर्म y क्रोमोसोम कैरी करने वाले होते हैं | x क्रोमोसोम वाले सेक्सड सीमन से AI करने पर बछिया पैदा होती तथा y क्रोमोसोम वाले सेक्सड सीमन से AI करने पर बछड़ा पैदा होता है |बाजार में उपलब्ध सेक्सड सीमन से AI करने पर सफलता की दर 90% रहती है |

क्या है टेक्नोलॉजी
वर्तमान में व्यवसायिक स्तर पर सेक्सड सीमन उत्पादन के लिए फ्लो साईटोमेट्री ही एक मात्र मान्यता प्राप्त तकनीक है | x या y कैरी करने वाले क्रोमोसोम आकार प्रकार तथा व्यवहार में सामान होते हैं इसलिए इन्हें पहचान कर अलग कर पाना मुश्किल होता है | x या y कैरी करने वाले क्रोमोसोम में एकमात्र बड़ा फर्क यह होता है की x क्रोमोसोम में y क्रोमोसोम के मुकाबले लगभग 4% अधिक DNA होता है | DNA की मात्र में फर्क के आधार पर ही फ्लो साईटोमेट्री तकनीक के द्वारा x और y क्रोमोसोम वाले स्पर्मस को पहचान कर अलग किया जाता है |
इस तकनीक में स्पर्मस को एक डाई से स्टेन किया जाता है, जो सीधे जाकर DNA से बाइन्ड हो जाती है | अब इसे फ्लो साईटोमीटर से गुजारते हैं यहाँ इन स्टेन किये हुए स्पर्मस पर लेजर लाइट डाली जाती है | DNA की मात्र अधिक होने के कारण x क्रोमोसोम y क्रोमोसोम के मुकाबले ज्यादा ब्राइट ग्लो करते हैं | कंप्यूटर इसी ग्लो के आधार पर ज्यादा ब्राइट ग्लो करने वाले x क्रोमोसोमस को +ve चार्ज तथा कम ग्लो करने वाले Y क्रोमोसोमस को –ve चार्ज से टेग करता है | अब इन स्पर्मस को इलेक्ट्रो मेग्नेटिक फील्ड से गुजारते हैं, जहाँ X और Y क्रोमोसोमस अपने चार्ज के आधार पर अलग अलग टयूब्स में इक्कठा हो जाते हैं |

विश्व में इतिहास
सेक्सड सीमन के व्यवसायिक उत्पादन की तकनीक सर्वप्रथम अमेरिका के लिवरपूल स्थित प्रयोगशाला के साइंटिस्टों ने विकसित की थी | यूरोप और अमेरिका में सेक्सड सीमन का व्यवसायिक उत्पादन और उपयोग इस 21वी सदी की शुरुआत में ही प्रारंभ हो गया था| वर्तमान में दो कंपनी सेक्सिंग टेक्नोलॉजीस और ABS ग्लोबल विश्व भर में सेक्सड सीमन का उत्पादन कर डेरी फार्मर्स को उपलब्ध करा रही हैं |

भारत में इतिहास
भारत में सेक्सड सीमन का उत्पादन सबसे पहले पश्चिम बंगाल गौ संपदा विकास संस्थान ने 2009 में शुरू किया था | संस्था ने RKVY प्रोजेक्ट के तहत 2.9 करोड़ की लागत से हरिन्गथा में BD इन्फ्लक्स हाई स्पीड सेल सॉर्टर स्थापित किया था | यहां उत्पादित सेक्सड सीमन से पहला बछड़ा 1 जनवरी 2011 को पैदा हुआ था, जिसका नाम श्रेयश था | श्रेयश भारत में उत्पादित होने वाले सेक्सड सीमन से पैदा होने वाला संभवतः पहला बछड़ा था |

वर्तमान परिदृश्य
वर्तमान में कई राज्यों के लाइवस्टोक डेवलपमेंट बोर्ड विदेशों से सेक्सड सीमन आयत कर किसानों को सब्सिडी पर उपलब्ध करा रहे हैं | सब्सिडी के बाद किसानों को यह सीमन स्ट्रा 1000 रुपये के आसपास में मिल रहा है | इस के अलावा प्रोग्रेसिव डेरी फार्मर्स एसोसिएशन पंजाब तथा कई गैर सरकारी संस्थायें (NGO) भी अपने क्षेत्र के किसानों को आयातित सेक्सड सीमन उपलब्ध करवा रही हैं | सीमन इम्पोर्ट करने की प्रक्रिया काफी जटिल है | इसकी अनुमति मिलने में ही कई बार एक से दो साल का समय लग जाता है |

मेक इन इंडिया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मेक इन इंडिया के आह्वान के बाद हमारे देश में सेक्सड सीमन का उत्पादन शुरू करने हेतु चौतरफा प्रयास शुरू हो गए हैं | देश के कई राज्यों ने अपने यहां सेक्सड सीमन का उत्पादन करने वाली लैब स्थापित करने हेतू ग्लोबल टेंडर जारी किए हैं | राज्य सरकारों के अलावा BIAF, JK TRUST, NDDB, AMUL जैंसी संस्थायें भी अपने यहां सेक्सड सीमन का व्यवसायिक उत्पादन शुरू करने की दिशा में तेजी से कार्य कर रही हैं | ABS india ने अभी हाल ही में चितले डेरी के साथ जॉइंट वेंचर में पूना के निकट सेक्सड सीमन का उत्पादन शुरू भी कर दिया है | यहां गाय की देशी नस्लों जैंसे गिर, साहीवाल के साथ ही मुर्रा भैंस के सेक्सड सीमन का भी उत्पादन किया जा रहा है |

सेक्सड सीमन के लाभ
कृषि के यांत्रीकरण के बाद हमारे देश में बैलों की उपयोगिता बहुत ही कम रह गई है | आज के परिदृश्य में किसान के लिए बैल पालना आप्रासंगिक को गया है | आंकड़ो के अनुसार इस समय देश में 84 मिलियन नर गौवंशीय पशु हैं, जिनका कोई सार्थक उपयोग नहीं है | ऐसी स्थिति में किसान अपनी गाय से बछिया ही चाहता है | सेक्सड सीमन डेरी उद्योग में अवांछित हो चुके नर पशुओं की संख्या को  नियंत्रित करने में बहुत मदद करेगा | सेक्सड सीमन के उपयोग से किसानों को नर पशुओं के रख रखाव का खर्च नहीं उठाना पड़ेगा जिससे उनकी आय में इजाफा होगा | अपनी ही डेरी में बछीयें तैयार होने से किसान को बहार से गायें नहीं खरीदना पड़ेगी |  बछिया का आकार बछड़े से कुछ छोटा होता है, इसलिए बछीया के प्रसव के समय डिस्टोकिया की संभावना बहुत कम रहती है |

सेक्सड सीमन की सीमायें
फिलहाल सेक्सड सीमन की कीमत बहुत अधिक है, इसकी कीमत ही इसकी सबसे बड़ी कमी है | देश के विभिन्न भागों में सेक्सड सीमन के स्ट्रॉ की कीमत 1200 से 2000 रुपये है | भारत के गरीब किसान के लिए यह महंगा है, दूसरा यदि AI सक्सेस नहीं हुई तो किसान को दुगना नुकसान उठाना पड़ता है | माना जा रहा है कि जैंसे-जैंसे देश में इसका उत्पादन और मांग बढ़ेगी इसकी कीमतों में भी कमी आयेगी |

सेक्सड सीमन के उपयोग से बछीया होने की संभावना 95% रहती है बछड़ा होने की 5% संभावना फिर भी रह जाती है |

भ्रांतियां

सेक्सड सीमन के स्ट्रा में मौजूद सीमन में स्पर्मस की संख्या सामान्य स्ट्रा में मौजूद सीमन में स्पर्मस की संख्या से काफी कम होती है | सामान्य स्ट्रा में मौजूद सीमन में स्पर्मस की संख्या 20 मिलियन होती है वहीं सेक्सड सीमन के स्ट्रा में मौजूद सीमन में स्पर्मस की संख्या 2 मिलियन होती है | इसलिए माना जाता है की सेक्सड सीमन के उपयोग से गर्भाधान की संभावना सामान्य सीमन के मुकाबले आधी रहती है | भारत में सेक्सड सीमन का उत्पादन करने वाली एक मात्र कंपनी ABS इंडिया के प्रोडक्शन मैनेजर डॉ राहुल गुप्ता का कहना है कि यह एक भ्रांती है, सेक्सड सीमन के उपयोग से गर्भाधान की संभावना सामान्य सीमन के मुकाबले मात्र 5 से 10% ही कम रहती है |

अच्छे परिणामों के लिए
ABS इंडिया के डॉ राहुल गुप्ता की सलाह है कि सेक्सड सीमन से अच्छे परीणाम पाने के लिए इसका उपयोग बछियों और पहली या दूसरी व्यात के पशुओं में करना चाहीये | गर्भाधान में मौसम की बहुत बड़ी भूमिका होती है, बहुत गर्म या बहुत आद्रता ( humidity) वाला मौसम गर्भाधान के लिए अनुकूल नहीं होता | अतः अच्छे परीणामों के लिए अक्टूबर और मार्च के बीच ही गर्भाधान का प्रयास करना चाहिए | सेक्सड सीमन के साथ उपलब्ध करवाई गई लीफलेट में दिये गए दिशा निर्देशों का पूरी तरह पालन करना चाहीये | 

शनिवार, 25 जनवरी 2020

अब 29 प्रजाति के पेड़ों की कटान प्रतिबंधित


अब 29 तरह के पेड़ों को काटने से पहले अनुमति लेना जरूरी

29 प्रजाति के पेड़ों की कटान प्रतिबंधित होगी। इन पेड़ों को काटने से पहले विभाग से अनुमति लेना जरूरी होगा। साथ ही अनुमति की शर्तों में भी व्यापक बदलाव किया गया है। डीएफओ एनके सिंह ने यह जानकारी शनिवार को दी।

 उन्होंने बताया कि अब तक सिर्फ पेड़ों की छह प्रजाति (आम, महुआ,  खैर, शीशम, नीम व सागौन) ही प्रतिबंधित थी। जबकि अब शासन ने सात जनवरी को शासनादेश के जरिए साल, बीजासाल, पीपल, बरगद, गूलर, पाकड़, अर्जुन, पलाश, बेल, चिरौंची, खिरनी, कैथा, इमली, जामुन, असना, कुसुम, रीठा, भिलावा, तून, सलई, हल्दू, बाकली/करधई, धौ को प्रतिबंधित दायरे में शामिल कर दिया है। इन पेड़ों को बिना अनुमति काटने पर वन अधिनियम की धारा 4/10 के तहत सजा व जुर्माना हो सकता है।

अनुमति के नियम भी हुए कड़े
डीएफओ ने बताया कि पहले विभाग से अनुमति के समय एक पेड़ काटने पर दो पेड़ों को लगाने की शपथ अथवा खर्च देना होता था। अब एक पेड़ काटने की अनुमति के समय 10 पेड़ों को रोपने व देखरेख के लिए धनराशि जमा करनी होगी। पेड़ को काटने की अनुमति के समय वन अधिकारी को इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि संबंधित पेड़ का व्यास पूरा हो चुका है अथवा उसकी बढ़त अभी संभव है। उपयुक्त व्यास न होने पर वन अधिकारी भी पेड़ को काटने की अनुमति नहीं दे सकेंगे।

45 लाख पौधे रोपित होंगे
डीएफओ ने बताया कि शासन ने अगले तीन वर्ष में रोपित किए जाने वाले पौधों की संख्या तय कर नर्सरी तैयार करने के आदेश दिए हैं। इस वर्ष एक जुलाई से पौधरोपण का अभियान चलाया जाएगा। जिले में 45 लाख 79 हजार 367 पौधरोपण का लक्ष्य तय किया गया है।

Republic Day 2020: गणतंत्र दिवस पर ब्राजील के राष्ट्रपति होंगे मुख्य अतिथि जेयर बोलसोनारो


गणतंत्र दिवस पर ब्राजील के राष्ट्रपति होंगे मुख्य अतिथि जेयर बोलसोनारो


इस बार 26 जनवरी (26 January) को भारत के मुख्य अतिथि ब्राजील (Brazil) के राष्ट्रपति जेयर बोलसोनारो (Jair Bolsonaro) होंगे। इस बार देश 71वां गणतंत्र दिवस (Republic Day) मना रहा है।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने ब्राजील के राष्ट्रपति जेयर बोलसोनारो को ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान निमंत्रण दिया था। वहीं पिछले साल गणतंत्र दिवस पर भारत के मुख्य अतिथि दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा थे।  जेयर बोलसोनारो को 2018 में ब्राजील का राष्ट्रपति नियुक्त किया गया था और उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 1988 में की थी. 

हर साल की तरह इस बार भी हम अपना गणतंत्र दिवस 26 जनवरी को मनाने के लिए तैयार हैं। इस साल हम अपना 71वां गणतंत्र दिवस सेलिब्रेट करने जा रहे हैं। इस खास दिन के लिए देश की राजधानी दिल्ली समेत देश के कोने-कोने में तैयारियां जोरो-शोरो पर हैं। स्कूल-कॉलेजों में इस दिन आयोजित होने वाले प्रोगाम के लिए स्टूडेंट्स तैयारियों में जुटे हैं। इन सबके बीच में आपके मन ये सवाल आता होगा कि आखिर 26 जनवरी को ही हम ‘रिपब्लिक डे  (Republic Day 2020) क्यों मनाया जाता है।  तो आइये जानते हैं। दरअसल भारत की संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 में भारत के संविधान को स्वीकार किया था, जबकि 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान पूरे देश में लागू हुआ था। इसी उपलक्ष्य में हर साल गणतंत्र दिवस मनाया जाता है। 26 जनवरी का दिन इसलिए चुना गया क्योंकि 26 जनवरी 1929 को अंग्रेजों की गुलामी के विरुद्ध कांग्रेस ने ‘पूर्ण स्वराज’ का नारा दिया था। इसके बाद से ही इस दिन को चुना गया था।

दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान
भारत के आजाद होने के बाद संविधान सभा का गठन हुआ था। संविधान सभा ने अपना काम 9 दिसंबर 1946 से शुरू किया। दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान 2 साल, 11 माह, 18 दिन में तैयार हुआ। संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को 26 नवंबर 1949 को भारत का संविधान सौंपा गया, इसलिए 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में प्रति वर्ष मनाया जाता है।   इसमें 448 आर्टिकल और 12 अनुसूचियां हैं। अब तक इसमें 100 अमेंडमेंट किए जा चुके हैं। भारत के संविधान को हिंदी और इंग्लिश में हाथ से लिखा गया था। इसकी ओरिजिनल कॉपी पार्लियामेंट की लाइब्रेरी में हीलियम से भरे केस में रखी हुई है।

जानें कुछ अन्य अहम तथ्य
- 26 जनवरी 1950 में इस दिन ही भारत सरकार अधिनियम (एक्ट) (1935) को हटाकर भारत का संविधान लागू किया गया था।
- 26 जनवरी 1950 को सुबह 10.18 बजे भारत एक गणतंत्र बना। इस के छह मिनट बाद 10.24 बजे राजेंद्र प्रसाद ने भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी।
-  इस दिन पहली बार बतौर राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद बग्गी पर बैठकर राष्ट्रपति भवन से निकले थे। इस दिन पहली बार उन्होंने भारतीय सैन्य बल की सलामी ली थी। पहली बार उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया था।

बुधवार, 15 जनवरी 2020

प्रॉपर्टी खरीदते समय इन 9 बातों का रखें विशेष ध्यान



प्रॉपर्टी खरीदते समय इन 9 बातों का रखें विशेष ध्यान

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1. जल्दबाजी कतई न करें।

2. जब कभी जमीन अथवा किसी भी तरह की प्रॉपर्टी देखने जाएं तो पहले अपनी जरूरत और बजट को ध्यान में रखें।इसके बाद ब्रोकर द्वारा दिखाई गई साइट को कम से कम तीन बार अकेले और परिवार के साथ उसे देखने जाएं। कोशिश करें कि हर बार समय भी अलग हो। मसलन अगर पहली बार सुबह गए थे तो अब दोपहर में जाए और उसके बाद जाएं तो शाम और फिर एक बार रात में भी चक्कर मारकर देखे। क्योंकि जहां भी आप प्रॉपर्टी लेने जा रहे हैं वहां आपको पूरे दिन और रात बिताने हैं, ऐसे में वहां के हर समय का जायजा मिल जाएगा। मसलन सुबह शाम और रात में कुछ अंतर दिखेंगे जो आपको एक ही टाइम में जाने से छिपाए अथवा न दिखने वाले हो सकते हैं।

3. इसके अलावा जिस जगह भी प्रॉपर्टी ले रहे हैं वहां के पड़ोसियों से भी इलाके के बारे में जानकारी करें। उन्हें बताएं कि वो आपके मोहल्ले में जमीन अथवा फ्लैट ले रहे हैं। ताकि अगर कोई भी समस्या हो तो वो आपके सामने आ जाए। हो सकता है कि आपको कुछ लोग ऐसे भी मिल जाए जो सिर्फ आपको निगेटिव ही बताएं, लेकिन उससे घबराए नहीं। क्योंकि उनके बताने के बाद आप अपना निर्णय स्वयं लेने वाले हैं। हां एक फायदा जरूर होगा कि आप उनकी बताई बातों को भी जज कर पाएंगे। 4. जब आप दिखाई गई प्रॉपर्टी से पूरी तरह संतुष्ट हो जाएं तो फिर बेचने वाले से उसके पेपर मांगे और पूछे कि इस प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री कौन करेगा। क्योंकि ज्यादातर बिल्डर कॉन्ट्रैक्ट अथवा एग्रीमेंट पर ही सेल करते हैं, ऐसे में आपको जमीन के असली मालिक का पता होना चाहिए। एग्रीमेंट पर बिल्डर जमीन मालिक से पावर ऑफ अटार्नी लेकर उसका आधा मालिक ही बनता है। इस दौरान आप उससे रेट को लेकर भी बात करें, और बागर्निंग भी करें। मानें तो ठीक नहीं तो कोई बात भी नहीं। प्रॉपर्टी खरीदते समय बार्गनिंग को बहुत ज्यादा तवज्जों नहीं दी जानी चाहिए, क्योंकि अगर प्रॉपर्टी आपके मतलब की है तो उसके दाम कम मायने रखते हैं।

5. पेपर चेक करने से पहले जमीन के आसपास का मुआयना अच्छे से कर लें, सुनिशचित करें कि उस जमीन का वाटर लेवल कितना है, पानी कैसा आता है। आसपास कितनी और कैसी कर्मशल एक्टिविटी होती है। कोई फैक्ट्री वैगरह है कि नहीं आदि

6. जमीन के पेपर दो तरह के होते हैं, एक जमीन रीसेल होती है और दूसरी किसान द्वारा बेची गई। अगर जमीन रीसेल है तो उसमें बैंक लोन करेगा। हालांकि यह लोन जमीन खरीदने के लिए नहीं होगा बल्कि खरीदने और बनवाने का एक साथ होगा। इससे ही पीएलसी कहा जाता है। जबकि किसान वाली जमीन खरीदने में बैंक लोन नहीं करेगा। क्योंकि किसान से खरीदी गई जमीन में आपको पेपर के नाम पर खतौनी और दाखिल खारिज का कागज ही मिलेंगे।रीसेल की जमीन में आपको पेपर के नाम पर रजिस्ट्री मिलेगी। रजिस्ट्री पेपर लेते समय ध्यान रखें कि रजिस्ट्री का अंतिम प़ृष्ठ पेपर में हो जरूर देख लें। इस पेपर में दो मुहर होंगी और जिल्द संख्या लिखी होगी। इसलिए पेपर लेते समय अंतिम और पहला पेपर जरूर देख लें। पहले पेपर में खरीददार और विक्रेता की फोटो और रजिस्ट्री करने वाले अधिकारी की भी फोटो भी होगी। हालांकि कई बार अधिकारी की फोटो नहीं भी होती है।

जबकि खतौनी में किसान आपको एक नंबर देगा जिससे आप इंटरनेट में भू-लेख पोर्टल पर जाकर चेक कर सकते हैं। इस पोर्टल पर जाने से पहले आपके पास जमीन जिस गांव में है उसका नाम और संबंधित तहसील का पता होना जरूरी है। इसके बाद ही आप भू-लेख पोर्टल से संबंधित जमीन का रेकॉर्ड देख सकते हैं। हालांकि यह डेटा अप्रमाणित होगा।

7. दो तरह के मामलों में आपको संबंधित तहसील जाना होगा। वहां एक वकील करना होगा। इस वकील से आप रजिस्ट्री की दूसरी नकल निकलवा सकते हैं। इसके लिए आपको वकील को नकल फीस और वकील की फीस देनी होगी। अगर आपके के पास खतौनी है तो आप वकील के माध्यम से तहसील से उक्त खतौनी का 60 साल का रेकॉर्ड मांग लें। यह रेकॉर्ड प्रामणित होगा। इससे आपको पता चल जाएगा कि उक्त जमीन पर पूरी तरह से कौन मालिक है। जमीन ग्राम समाज की है कि नहीं इसकी भी पुष्टि हो जाएगी। एक बार सबकुछ क्लीयर हो जाए तो आप डील फाइनल कर सकते हैं। 8. डील फाइनल करने से पहले संबंधित प्लॉट अथवा प्रॉपर्टी का चिह्नांकन भी करवा लें। इसके लिए आप संबंधित लेखपाल की मदद लें। लेखपाल अथवा अमीन के माध्यम से जमीन की पैमाइश करवा लें। उस पर निशानदेही भी कर दें। तदोंपरांत आप जमीन का बयाना कर दें। बाकी रकम रजिस्ट्री के दौरान ही देनी होती है।

9. रजिस्ट्री करवाने के तुरंत बाद ही संबंधित प्रॉपर्टी पर अपनी बाउंड्रीवॉल खिंचवा दें। भूमि पूजन के बाद बाउंड्री बनाने से आपकी जमीन आपके कब्जे में आ जाएगी।





























शुक्रवार, 10 जनवरी 2020

माघ मेला 2020 : 10 जनवरी से अंतिम दिन 21 फरवरी (महाशिवरात्रि) तक


माघ मेला 2020 : 10 जनवरी से अंतिम दिन 21 फरवरी (महाशिवरात्रि) तक


गंगा, यमुना व अदृश्य सरस्वती के संगम की नगरी प्रयागराज में माघ मेला-2020 का श्रीगणेश पौष पूर्णिमा पर 10 जनवरी से होगा। जप, तप, स्नान, ध्यान और दान के कल्पवास की भी इसी दिन से शुरुआत हो जाएगी। यह मेला महाशिवरात्रि यानि 21 फरवरी तक चलेगा। मेला प्रशासन ने प्रथम स्नान पर्व पर 32 से 40 लाख तक श्रद्धालुओं के संगम में डुबकी लगाने का अनुमान लगाया है, जो मौनी अमावस्या के दिन करीब दो करोड़ तक पहुंचेगा। इस बार मेला क्षेत्र में भीख मांगने की इजाजत नहीं होगी। भिछुकों को हटाने के लिए भिक्षुक निरोधक दस्ते का गठन किया गया है। प्रशासन को अंदेशा है कि भिखारियों के भेष में अराजकतत्व मेले में आ सकते हैं। 


इस बार क्या है खास 

पहली बार भिखारियों पर होगी पाबंदी 
भिक्षुक निरोधक दस्ते का गठन 

सरकार ने 57 करोड़ रुपए का जारी किया बजट

योगी सरकार ने माघ मेले के लिए 57,90,61,000 रुपए का बजट जारी किया है। कुंभ की सफलता के बाद प्रशासन को उम्मीद है कि, इस बार माघ मेले में ज्यादा श्रद्धालु आएंगे। इसलिए मेले का क्षेत्रफल पिछले साल की तुलना में 500 बीघा बढ़ाकर ढाई हजार क्षेत्रफल कर दिया गया है। डायल 112 डायल की 20 चार पहिया और 25 दोपहिया वाहनों को लगाया गया है। 174 सीसीटीवी कैमरों में पूरे मेले को कवर करने की कोशिश की गई है। ड्रोन कैमरे से भी मेले पर नजर रखी जाएगी। कुंभ मेले में पिछले वर्ष मात्र 12 थाने और 36 पुलिस चौकियां बनाई गई थी। जबकि इस बार 13 थाने और 29 पुलिस चौकियां बनाई गई हैं। 


5 किमी लम्बा होगा स्नान घाट

माघ मेले में आने वाले श्रद्धालुओं की तादात को देखते हुए इस बार मेला क्षेत्र में तकरीबन 5 किलोमीटर लंबा स्नान घाट बनाया गया है। गंगा और यमुना किनारे कुल 16 स्नान घाट बनाए गए हैं। सबसे बड़ा संगम स्नान घाट है। सर्कुलेटिंग एरिया में 3 किलोमीटर के स्नान घाट की तैयारी चल रही है। यहां 1 मिनट में 13 से 15000 श्रद्धालु स्नान कर सकेंगे। महिलाओं के लिए 700 चेंजिंग रूम बन रहे हैं। 50 हाई मास्ट रोशनी के लिए लगाए गए हैं। रात में सभी स्नान घाट दूधिया रोशनी से जगमग दिखाई देंगे।

छह सेक्टरों में बसाया गया मेला

वर्ष 2018 के मेले में 5 सेक्टर थे, जबकि इस बार 6 सेक्टर में मेला बसाया जा रहा है। सेक्टर 1 क्षेत्रफल के लिहाज से सबसे बड़ा होगा। इसमें संगम परेड मैदान शामिल है। सेक्टर एक में ही सरकारी विभागों के कार्यालय कंट्रोल रूम, पुलिस लाइन, मीना बाजार व झूले लगाए गए हैं। सेक्टर एक को छोड़कर सभी सेक्टरों में कल्प वासियों को बसाया जा रहा है। सेक्टर 2 काली मार्ग से नागवासुकि तक होगा, जबकि सेक्टर 3, 4 और 5 झूसी क्षेत्र में है। सेक्टर 6 अरैल क्षेत्र में है। खाक चौक, दंडी बाड़ा और आचार्य बाड़ा भी झूसी क्षेत्र में ही हैं। 

225 मेला स्पेशल ट्रेनों का होगा संचालन

माघ मेले के दौरान रेलवे ने तीन प्रमुख स्नान पर्वो मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या और वसंत पंचमी पर कुल 225 मेला स्पेशल ट्रेनों के संचालन की योजना बनाई है। अन्य तीन पर्वों पौष पूर्णिमा, माघी पूर्णिमा और महाशिवरात्रि पर श्रद्धालुओं की भीड़ के अनुसार स्पेशल ट्रेनों का संचालन किया जाएगा।

प्रमुख स्नान

तारीख प्रमुख स्नान श्रद्धालुओं की संख्या का अनुमान
10 जनवरी पौष पूर्णिमा 32 लाख
15 जनवरी मकर संक्रांति 80 लाख
24 जनवरी मौनी अमावस्या 225 लाख
30 जनवरी   बसंत पंचमी 75 लाख
09 फरवरी माघी पूर्णिमा 75 लाख
21 फरवरी महाशिवरात्रि 15 लाख