गुरुवार, 27 नवंबर 2014

रंग रसिया

रंग रसिया

आज मैंने केतन मेहता की रंग रसिया फिल्म देखी। फिल्म में सुगंधा का रोल करने वाली नोबल पुरस्कार प्राप्त अर्थषास्त्री अर्मत्य सेन की बेटी नंदना सेन ने जिस सहजता के साथ अपने को स्वर्ग अफसरा उर्वशी के चरित्र में ढाला है वो कोई सहज कार्य नहीं है। नंदना सेन का सुगंधा कैरेक्टर वाकई कला एक्टिंग के प्रति दीवानगी है। आज के दौर में यह काफी कठिन है। 18वीं शताब्दी में भारत के महान चित्रकार राजा रवि वर्मा का कैरेक्टर प्ले करने वाले रणदीप हुड्डा ने भी कमाल का अभिनय किया है। परेष रावल का साइड किरदार गोवर्धन सेठ भी काफी अहम रोल में गिना जाना चाहिए। फिल्म में न्यूडिटी होने के बाद भी यह फिल्म लोगों को देखनी चाहिए। इस तरह की फिल्में हमें नाॅलेज देती हैं। मसलन जो इस फिल्म को देखेगा उसे आसानी से पता चल सकेगा कि मां सरस्वती, लक्ष्मी आदि तमाम देवी देवताओं के काल्पनिक चित्र कैसे और किसने कब बनाए। इसके अलावा भारत में प्रिंटिंग प्रेस कौन लाया। देश में सिनेमा को लाने वाला कौन आदि ऐसे कई सवाल जो हम किताबों में पढ़कर बतौर जनरल नाॅलेज याद करते हैं, केतन मेहता ने वो सारी चीजे फिल्म के माध्यम से मन मस्तिश्क में स्थायी रूप से बैठाने का प्रयास किया है। फिल्म में राजा रवि वर्मा का नौकर पाचन का का रोल विपिन षर्मा ने प्ले किया है। पाचन एक ऐसा नौकर है, जो दुनिया की परवाह किए बगैर अपने मालिक की सेवा में ईमानदारी से जुटा रहता है। उसे अपने मालिक राजा रवि वर्मा के प्रति पूरा विष्वास है। पाचन खुशवंत सिंह के नौकर बुधसिंह जैसा ही हैैै। हां मैं उसी बुधसिंह की बात कर रहा हूं जो अपने मालिक और भागमती के संबंधों से चिढ़ता है। इसके बाद भी वो भागमती ( हिजड़ा) को अपने मालिक लिए उसे बुलाने जाता है। (खुशवंत सिंह की किताब दिल्ली से)
रंग रसिया में न सिर्फ राजा रवि वर्मा के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है, बल्कि इसमें नारी को लेकर वो तमाम मुदृदे भी मिलते हैं जिसमें वर्षों बहस चल सकती है। राजा रवि वर्मा का उर्वशी प्रसंग और उस पर बनी सुगंधा की न्यूड तस्वीर बहस का विषय है, लेकिन इसके बाद भी सेंसर बोर्ड ने इसे पास कर बालीवुड सिनेमा के साथ न्याय किया है। मैं तो कहूंगा बालीवुड को रंग रसिया जैसी फिल्म बनाते रहना चाहिए। निर्देषक केतन मेहता ने रंग रसिया के माध्यम से आम जनमानस तक महान चित्रकार राजा रवि वर्मा को आसानी से पहुंचाने का कार्य किया है। इस फिल्म में राजा रवि वर्मा के बारे में तो अच्छी जानकारी है ही साथ ही वे न सिर्फ अपनी देवी देवताओं की चित्र बनाने के लिए मशहूर है बल्कि भारतीय सिनेमा के आधार भी है। तभी तो उन्होंने दादा साहेब फालके की आर्थिक मदद कर कला को जीवत रखा। मंगल पांडेय बनाने के बाद केतन मेहता की यह दूसरी फिल्म है जो इतिहास पर आधारित है। अंत में मैं यह कहना चाहूंगा कि जो इस फिल्म को गंदा या अष्लील कहते हैं उन्हें उनके लिए फिल्म में धर्मगुरू चिंतामणि का किरदार पर्याप्त है। चिंतामणि जिसने 18 हजार मंदिर का निर्माण कराने के बाद भी सुगंधा को देवी से वेष्या में बना डाला था। चिंतामणि जैसे किरदार आज भी कचहरी में वकीलों के भेश में रहते हैं। बावजूद इसके फिल्म में न्याय जिंदा रहता है। जो राजा रवि वर्मा को बा इज्जत बरी कर देता है। - धन्यवाद
समीक्षा पसंद आई तो लाइक करें अन्यथा कमेंट करें। शेखर त्रिपाठी